ब्यूरोक्रेसी

in #busy5 years ago

नमस्कार दोस्तों

किसी भी देश के उत्थान और पतन का सबसे बडा कारण वहाँ की नौकरशाही हैं। सरकारें जो बनती हैं, उस में चुन कर आने वाले लोगो के पास सरकारी कार्यों की कार्यप्रणाली का कोई अनुभव नही होता, न ही उन्हे नियम व कायदो की जानकारी होती हैं, और न वित्तीय प्रबंधन का अनुभव। बहुत कम राजनेता हाई एजुकेटेड होते हैं, बहुत कम राजनेताओं को मैनेजमेंट का अनुभव होता हैं। ऐसी स्तिथि में वो नाममात्र के मुखिया होते हैं।
इसके विपरित प्रशासनिक पदों पर पहुंचने वाले लोग अपने क्षेत्र के बहुत अनुभवी लोग होते हैं। उनके पास शिक्षा के साथ मैनेजमेंट का ज्ञान भी होता हैं। वो आवश्यक, अतिआवश्यक और कम वरीयता वाले कार्यों का निर्धारण आसानी से कर सकने में समर्थ होते हैं।
किसी भी कार्य की सफलता का आधार, उस कार्य का प्रबंधन होता हैं। सभी संसाधनो के होते हुए भी, यदि कार्य का प्रबंधन उचित न हो तो कार्य की सफलता का ग्राफ बहुत नीचे आ जाता हैं, और संसाधनो का अभाव हो, पर प्रबंधन अच्छा हो, तो कार्य की सफलता का ग्राफ उच्च हो जाता हैं।
देश की सदने भी वो ही प्रस्ताव पारित करती हैं, और उसी स्वरुप में करती हैं, जिस स्वरुप में वहाँ की ब्यूरोक्रेसी ने बनाकर दिया हैं। सदन में पारित हो जाने के बाद उसकी क्रियान्विती का सम्पुर्ण दायित्व भी ब्यूरोक्रेसी पर ही निर्भर करता हैं।
जिस देश की ब्यूरोक्रेसी सदृढ और देशभक्ति की भावना से प्रेरित हो तो उस देश का उत्थान निश्चित हैं। वो अपनी योग्यता का पूरा उपयोग देश के उत्थान के लिये कर के बहुत ही कुशलता के साथ प्रत्येक योजना का धरातल पर सफल क्रियान्वयन करके सफलता के उच्चतम शिखर को छूने का प्रयास करेगा, जिसके परिणाम भी अपेक्षित परिणामों से बेहतरीन निकलेंगे।
एक योजना जब फ्लाप होती हैं, तो वहाँ की सरकार की करोड़ो की संख्या में मुद्रा बर्बाद हो जाती हैं, जिनका कुछ भी आउटपुट नही मिलना तय हो जाता हैं, जबकि अन्तर्निभरता पर आधारित चार योजनाओ का एक साथ सफल क्रियान्वयन बहुत बड़ी मात्रा में धन की बचत कर सकता हैं, साथ ही मानवीय श्रम की भी बहुत बड़ी मात्रा में बचत करता हैं।
अधिक जनसंख्या वाले अधिकतर देशो में बेरोजगारी की समस्या हैं। जबकि श्रमशक्ति का सही नियोजन उत्पादन को कई गुणा बढ़ाने में सहायक हो सकता हैं।जिससे न सिर्फ बेरोजगारी की समस्या का समाधन हो सकता हैं, बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने के लिये बहुत कारगर हो सकता हैं।
प्रकृति नें सृष्टि की रचना बहुत बेहतरीन तरीके से की हैं। विश्व का कोई भी भौगोलिक क्षेत्र ऐसा नही हैं, जहाँ सभी तरह के उत्पादन होते हैं। विश्व के प्रत्येक देश के लोगो को किसी एक क्षेत्र के उत्पादन में पारंगत बनाया हैं। अर्थात हम ये कह सकते हैं, कि कोई भी देश ऐसा नही जिसको आयात की आवश्यकता नही होती या विश्व का कोई भी देश ऐसा नही, जो निर्यात नही करता हो। आज के तकनिकी युग ने आसानी से विश्व को एक बाजार बना दिया हैं। ऐसी स्थिति में बेहतरीन मैनेजमेंट व उचित प्रशिक्षण द्वारा बहुत ही सुगमता से अवसर उप्लब्ध करवाये जा सकते हैं।
ब्यूरोक्रेसी फ़्री हैण्ड हो, पर बेलगाम न हो तो आसानी से किसी भी देश का उत्थान संभव हैं। विश्व के प्रत्येक देश को आज ये भी समझने की आवश्यकता हैं, कि अब तुष्टीकरण और अपने भौगोलिक क्षेत्र को बढ़ाने जैसी नीतियों पर काम करना न सिर्फ बेवकूफी हैं, बल्कि अपने ही पेरो पर कुल्हाडी चलाने जैसा काम हैं। आज के युग में समझदारी सिर्फ और सिर्फ इसी में हैं, कि विश्व को एक बाजार समझा जाए।
ब्यूरोक्रेसी को पारंगत बना कर उनका सदुपयोग करने का काम भी ब्यूरोक्रेसी का ही हैं। राजनेतिक व्यक्तित्व लोकतंत्र में सत्ता में आने के प्रयासो में लगे रहते हैं। उनसे किसी प्रकार की अपेक्षा करना ज्यादा ठीक नही हैं। वो तो बनते हुए काम को डिस्टर्ब न करे तो उनकी मेहरबानी होगी। और यदि उनका सहयोग मिल जाए तो भाग्य की बात हैं।

इस टॉपीक पर आप से अपके विचार सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद
शुभ दिन।

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