प्रात: वंदन
"कराग्रे वसते लक्ष्मी
कर मध्ये सरस्वती,
करमूले तो वसते विष्णु
प्रभाते कर दर्शनम।"
हमारे वैदिक शास्त्रों के अनुसार उठते ही सबसे पहले हमें अपने ही हाथो के दर्शन करने चाहिए, इसमे सभी दैवीय शक्तियो के साथ हमारे भाग्योदय हेतु सार्थक स्वयं के हाथो को ही माना हैं।
वैसे एक कहावत भी हैं, कि 'अपने हाथ जगन्नाथ"। सामान्यतया एक बात देखने में आती हैं, कि जो इन्सान अपने हाथो पर भरोसा रखता हैं, उसे कभी दूसरो पर आश्रित नही होना पड़ता।
हमारे हाथ ही हैं, जो हमें समर्थ बना सकते हैं, दूसरों के हाथ ती हमें आश्रित ही रखेंगे।
आप अपने आप पर भरोसा कर सकते हैं, आपसे ज्यादा भरोसेमंद आपके लिए कोई दुसरा नही हो सकता।
प्रयास ये हो कि हमें देखकर लोग हमसे प्रेरणा ले। हम अक्सर कामचोरो को देखकर खुद को डिस्चार्ज कर लेते हैं। जबकि होना इसका उलटा चाहिए, कि लोग हमें देखकर चार्ज होने चाहिए।
अपने हाथ जगन्नाथ का मतलब ही ये हैं, कि आपसे ज्यादा आपका हितेषी दुसरा कोई नही, आप ही हैं, जो अपने लिए स्वयं का भला कर सकते हैं, अर्थात आपसे बेहतर आपके लिए अन्य कोई नही।
हाथ की लकीरें हमारा भविष्य निर्धारित करे न करे, हमारे कर्मो से हम हाथों की लकीरों को आवश्य बदल सकते हैं।
कर्मो का झंझावत सफलता को हमारे कदमो में ला सके, वो काबिलियत हमारे में, हम स्वयं ही पैदा कर सकते हैं।
सुप्रभात
आपका दिन मंगलमयी हो।
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