मानव मन और प्रकृतिक सौंदर्य
सौंदर्य बोध से अभिप्राय है सौंदर्य का ज्ञान, सुंदरता का आभास और खूबसूरती का अहसास है। सौंदर्य या सुंदरता का सीधा संबंध मानव मन में निहित भावना से है। मानव मन की यही भावना मनुष्य को आंखों की दृष्टि में समाहित रहती है। एक कथन के अनुसार दृष्टि में सृष्टि है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य मन में कैसी भावना का निवास है। यदि व्यक्ति के मन में इस सृष्टि में समस्त प्राणियों व जड़ पदार्थो के प्रति पावन भावना का निवास है तो यही पवित्र भावना आपकी आंखों के माध्यम से सांसारिक पदार्थो एवं प्राणी जगत के प्रति सुंदरता का दृष्टिकोण बनाती है। यदि मनुष्य के मन में बुरी भावना का निवास है तो व्यक्ति के मन में निहित यही दुर्भावना सांसारिक पदार्थो और जीव जगत के प्रति सुंदरता के विपरीत वीभत्स दृश्य पेश करती है। निस्संदेह सुंदरता के आभास से मानव मन को भावना का अटूट संबंध है। मानव मन में निहित अच्छी अथवा बुरी भावना को दर्शाता यह कथन पर्याप्त है कि- 'जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूर्ति देखी तिन तैसी।'
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अपने कभी सोचा हैं कि हमारे आसपास की प्राकृतिक छटा इतनी मनमोहक भी हो सकती हैं, जिसे देखकर आप का मन खुशी से झूम उठे, और आपकी आंखे कुछ समय के लिए वहीं थम जाएं।
प्रकृति और मनुष्य के बीच बहुत गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं।
दरअसल प्रकृति हमें कई महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाती है। जैसे-पतझड़ का मतलब पेड़ का अंत नहीं है। इस पाठ को जिस व्यक्ति ने अपने जीवन में आत्मसात किया उसे असफलता से कभी डर नहीं लगा। ऐसे व्यक्ति अपनी हर असफलता के बाद विचलित हुए बगैर नए सिरे से सफलता पाने की कोशिश करते हैं। वे तब तक ऐसा करते रहते हैं जब तक सफलता उन्हें मिल नहीं जाती। इसी तरह फलों से लदे, मगर नीचे की ओर झुके पेड़ हमें सफलता और प्रसिद्धि मिलने या संपन्न होने के बावजूद विनम्र और शालीन बने रहना सिखाते हैं।
पुष्प प्रसन्नता, उल्लास और नवजीवन के खिलखिलाते रूप के मूर्त प्रतीक होते हैं। प्रकृति के गोद में पुष्पों की महक, उनका हँसना, खेलना, घूमना मनुष्य के लिए उल्लास, प्रफुल्लता का जीवन बिताने के लिए सुंदर सन्देश है। जो मनुष्य प्रकृति के सौंदर्य का आनंद नहीं ले पाता, वो मनुष्य कहलाने के योग्य कैसे हो सकता हैं।
फूल सुन्दर है और मानव को सुन्दरतम बताया गया है । सृष्टि का विवेकशील प्राणी है मानव ।
मानव मन का सहज ही प्रकृति की सुंदरता की तरफ आकर्षित होना स्वाभाविक हैं। जीवन सिर्फ कमाने और खाने के लिए नहीं हैं। एकमात्र मनुष्य शरीरधारी जीव ही आनंद की अनुभूति कर सकता हैं। इसके लिए अनेक ऐसी जगहे हैं , जहां जा कर सुख प्राप्त किया जा सकता हैं।
एक तथ्य ये भी हैं ,कि इनका सिर्फ आनंद ले , नुकसान नहीं पहुचाये।
इस पोस्ट में मैंने सहज मानव मन का प्रकृति से संबंध पर संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया हैं। सुंदर दृश्यों से आपके मन को प्रसन्नता देने का प्रयास मात्र हैं ये। इस पोस्ट में मैंने सिर्फ आपका मनोरंजन करना चाहा हैं। आपको पसंद आये तो अपवोट कीजियेगा और कमेंट लिखकर मार्गदर्शन भी।
आपका
indianculture1
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