Saturday For Story..!!, तिवारी का तोता
काशी की पवित्र नगरी में एक पंडित तिवारी रहते थे, जिनके पास एक तोता था। और यह तोता तिवारी क पिंजरे में रहता था, तिवारी का दिया हुआ दान खाता था और उसके घरवालों से तिवारी की जुबान में बातें करता था।
एक दिन एक जंगली तोता आकर उसके पिंजरे के सामने बैठ गया और बोला,‘‘ क्यों भाई पंछी , तू कौन है, जिसकी सूरत मुझसे मिलती है, जिसका स्वभाव मुझसे नहीं मिलता, और जिसे किसी ने यहाँ कैद कर रखा है?‘‘
पिंजरे के तोते ने जवाब दिया, ‘‘मै भी तुझ जैसा तोता हूँ और मेरा रंग की तरह हरा हैं और मेरी चोंच भी तेरी चोचं की तरह मोटी है। और फर्क सिर्फ यह है, कि तू जंगल में रहता है और मैं इस मकान में रहता हूँ। मेरा मकान मजबूत है और तेरे जंगल में खतरे है।‘‘
जंगल का तोता-‘‘तुझ पर लानत है! तेरी आजादी का रंग मुर्दा हो चुका है, और तेरी आँखें अंधी हो गई है। वर्ना, तू इस पिंजरे की तारीफ न करता, जिसने तेरी देह को ही कैद कर लिया है। मैं तुझे जंगल से यह बताने के लिए आया हूँ, कि तू अभागा है।‘‘
पिंजरे का तोता-‘‘तेरी बातें मेरी समझ के बाहर है; फिर भी मैं तेरी बातों को अपने दिल में टओलूँगा। तू मुझे समझा, मै क्यों अभागा हूँ और वह कौन-सा दुर्भाग्य है, जिसे मेरी आँख नहीं देखती?‘‘
जंगल का तोता-‘‘तेरा घर अपना बनाया हुआ नहीं है, न उसके दरवाजे पर तेरा आख्तियार है। और तूने अपना मरना-जीना किसी दूसरे के हाथ में सौंप रखा है। यह तेरा दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है? मगर तेरा इससे भी बडा़ दुर्भाग्य यह हैं, कि तूने कभी खुले आसमान तले पंख नहीं फैलाए और कभी खुली हवा में साँस नही ली और कभी अपने रास्ते आप नहीं ढूँढ। तूने कभी मौत का सामना नहीं किया, इसलिए तूने कभी जीवन के मजे नहीं लूटे। तू हर समय अपने मालिक के मुँह की तरफ देखता है! और तेरे लिए तेरी मर्जी कोई चीज नहीं -तेरी मर्जी वह है, जो तेरा मालिक चाहे। सो तेरा मालिक और तेरा पिंजरा तेरी दुनिया की सबसे बडी मुसीबत है।‘‘
पिंजरे का तोता-‘‘मैं तो समझता हूँ, मेरा मालिक मुझ पर मेहरबान है, और यह मेरी खुशकिस्मती है, कि उसने मुझे यह बना दिया है। वरना कौन मुझे पानी पिलाता ? कौन मुझे दाना खिलाता? कौन रात के जाडे और अंधेरे में मेरी रक्षा करता? और मेरे पडोस में बिल्लियाँ बहुत हैं, जिनके मुँह में दाँत हैं, पंजो में नाखून हैं, दिल में बेरहमी है। वे मुझे ख जाती।‘‘
जंगल का तोता-‘‘ भगवान करे, तेरे लिए तेरे जीवन के रास्ते बंद हो जाएँ तू यह क्यों नहीं समझता, कि तू यहाँ कैद है, और इस कैद में तुझसे तेरी आत्मा भी बेगाना हो गई है।‘‘
पिंजरे का तोता-‘‘मैं कैदी नहीं हूँ। में जब चाहूँ। पिंजरे में घुम सकता हूँ पंख फेला सकता हूँ सीटियाँ बजा सकता हूँ। मुझे कोई नहीं रोकता, मेेरे पिंजरे मे मेरा राज है। फिर मैं क्योंकर मान लूँ कि मै गुलाम हूँ और मेरा घर मेरा कैदखना है?‘‘
जंगल का तोता-‘‘बहुत अच्छा। आज मैं किसी की बात न सुनूँगा, सिर्फ अपने मन की बात सुनूँगा, सिर्फ अपनी बोली बोलूँगा, जो मेरे माँ-बाप बोलते थे, जो तू बोलता है, जो मेरे मांस और हड्डियों की बोली है।‘‘
इसके बाद जब का तोता दूसरे दिन आने की प्रतिज्ञा करके चला गया, तो पिंजरे का तोता हैरान था और यह हैरानी उसके दिल पर और आँखो की पलकों पर छाई हुई थी।
और जब पंडित तिवारी का बेटा वहाँ आकर तोते से बाते करने लगा, तो तोते ने उसकी बात का जवाब न दिया, और अपने दिल में कहा-मैं इसकी बात का क्यों जवाब दूँ? मैं इसका गुलाम नहीं हूँ।
और पंडित तिवारी के बेटे ने लोहे की एक सींक लेकर पिंजरे में डाली और सींक तोते की गरदन में चुभोकर कहा-‘‘ बोलता है या नहीं? ‘‘
तोते ने जवाब न दिया और गरदन पर घाव खाकर वह एक तरफ हट गया। और पंडित तिवारी के बेटे ने उसे फिर सींक चुभोई और कहा-‘‘ बोलता हैया नहीं?‘‘
तोते ने जवाब न दिया और वह छाती पर घाव खाकर दूसरी तरफ हट गया। पंडित तिवारी के बेटे ने तोते के बार-बार सींक चुभोई और तोते ने हर बार उसकी बात का आदमी की बोली में जवाब देने से इेकार किया और वह अपने शरीर पर घाव खाता रहा।
दूसरे दिन जब जंगल का आजाद तोता पिंजरे के कैद तोते से मिलने आया, तो पिंजरे का तोता मरा पड़ा था, जंगल मे तोते ने अपनी जंगल की बोली में कहा-‘‘जब गुलाम अपने मालिक की बात नहीं सुनता, तो उसका यही हाल होता है।‘‘
पंड़ित तिवारी ने अपने बेटे से कहा-‘‘ इस जंगली तोते को गुलेल से मारकर उड़ा दो। हमारा तोता इसी ने मारा है।‘‘
और मरे हुए तोते की मरी हुई आत्मा ने कहा-‘‘ इस जंगली तोते को चूरी दो। इसने एक कैदी को छुडाया है। और एक मुर्दे को जिंदा किया है।‘‘
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