सत्यार्थ प्रकाश 176

in #book6 years ago (edited)

IMG-20180825-WA0003.jpg

(प्रश्न) अनेन आत्मना जीवेनानुप्रविश्य नामरूपे व्याकरवाणि।। - छां०।।

तत् सृष्ट्वा तदेवानुप्राविशत्।। - तैनिरीय०।।

# परमेश्वर कहता है कि मैं जगत् और शरीर को रचकर जगत् में व्यापक और जीवरूप होके शरीर में प्रविष्ट होता हुआ नाम और रूप की व्याख्या करूं।।१।।

परमेश्वर ने उस जगत् और शरीर को बना कर उस में वही प्रविष्ट हुआ। इत्यादि श्रुतियों का अर्थ दूसरा कैसे कर सकोगे? ।।२।।

(उत्तर) जो तुम पद, पदार्थ और वाक्यार्थ जानते तो ऐसा अनर्थ कभी न करते! क्योंकि यहां ऐसा समझो एक प्रवेश और दूसरा अनुप्रवेश अर्थात् पश्चात् प्रवेश कहाता है। परमेश्वर शरीर में प्रविष्ट हुए जीवों के साथ अनुप्रविष्ट के समान होकर वेद द्वारा सब नाम रूप आदि की विद्या को प्रकट करता है। और शरीर में जीव को प्रवेश करा आप जीव के भीतर अनुप्रविष्ट हो रहा है। जो तुम अनु शब्द का अर्थ जानते तो वैसा विपरीत अर्थ कभी न करते।

(Source);(http://satyarthprakash.in/hindi/chapter-seven/)

Sort:  

You got a 8.83% upvote from @booster courtesy of @suthar486!

NEW FEATURE:

You can earn a passive income from our service by delegating your stake in SteemPower to @booster. We'll be sharing 100% Liquid tokens automatically between all our delegators every time a wallet has accumulated 1K STEEM or SBD.
Quick Delegation: 1000| 2500 | 5000 | 10000 | 20000 | 50000

Coin Marketplace

STEEM 0.30
TRX 0.12
JST 0.034
BTC 63688.35
ETH 3125.30
USDT 1.00
SBD 3.97