पिछले-पहर का सन्नाटा था

in #busy5 years ago

पिछले-पहर का सन्नाटा था
तारा तारा जाग रहा था

पत्थर की दीवार से लग कर
आईना तुझे देख रहा था

बालों में थी रात की रानी
माथे पर दिन का राजा था

इक रुख़्सार पे ज़ुल्फ़ गिरी थी
इक रुख़्सार पे चांद खुला था

ठोढ़ी के जगमग शीशे में
होंटों का साया पड़ता था

चन्द्र किरण सी उंगली उंगली
नाख़ुन नाख़ुन हीरा सा था

इक पांव में फूल सी जूती
इक पांव सारा नंगा था

तेरे आगे शम्मा धरी थी
शम्मा के आगे इक साया था

तेरे साय की लहरों को
मेरा साया काट रहा था

काले पत्थर की सीढ़ी पर
नर्गिस का इक फूल खुला था

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img credz: pixabay.com
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