उफ़, ये अंग्रेज़ी!

in #hindi6 years ago (edited)

कुछ लोग नई भाषाओँ को सीखने में बड़े माहिर होते हैं। वे किसी भी नई जगह जाते हैं तो 1-2 महीने में ही वहाँ की स्थानीय भाषा में बात करने में दक्षता प्राप्त कर लेते हैं। परंतु मैं ऐसे प्रतिभाशाली लोगों में नहीं आता।

अंग्रेज़ी भारत के लिए एक विदेशी भाषा है। किंतु अंग्रेजों के लंबे शासन ने अनेक भारतीयों को अंग्रेज़ी में पारंगत बना दिया। और तो और, इसे भारतीयों ने प्रतिष्ठा का विषय बना डाला। देश की आजादी के बाद भले ही हिंदी को यहाँ की राष्ट्रीय भाषा घोषित किया गया लेकिन अंग्रेज़ी का रूतबा सदा कायम रहा। व्यवसाय व व्यापार की यह अघोषित रूप से औपचारिक संवाद की भाषा बन गई। न्यायपालिका में, विशेषकर उच्चतर और उच्चतम न्यायलय में तो इसे एक विशिष्ट दर्जा मिल गया। उच्च-शिक्षा प्राप्त करने का माध्यम भी अधिकतर अंग्रेज़ी ही रहा। अतः मैंने अंग्रेज़ी सीखने का कई वर्षों तक प्रयास किया लेकिन असफल ही रहा।

अंग्रेज़ी के बढ़ते चलन के कारण हिंदी का प्रभाव घटता गया। हिंदी की मौलिक शब्दावली का प्रचलन लगातार घटता गया और उसमें अंग्रेज़ी के नए-नए शब्द जुड़ते गए। अब तो आम बोलचाल में जो भाषा प्रचलित हो गई, उसे न तो पूर्णतः अंग्रेज़ी कहा जा सकता है और न ही हिंदी! इस निश्रित रूप को एक नया ही नाम दे दिया गया - “हिंग्लिश”।

चुँकि मैंने अंग्रेज़ी को हमेशा पढ़कर और लिखकर ही सीखा था इसलिए मैं कभी भी उसके उचित उच्चारण को नहीं सीख पाया। यही कारण रहा कि मेरी जबानी अंग्रेज़ी हमेशा कमज़ोर रही। आज भी जब मुझे अंग्रेज़ी में बात करने की ज़रुरत पड़ती है तो या तो मैं कन्नी काट लेता हूँ या फिर कठिन शब्दों को उच्चारित करने से बचने के लिए अपनी अभिव्यक्ति हेतु आसान शब्दों की तलाश करता हूँ। Articulation के लिए सही grammar, stress, diction इत्यादि से मुझे बड़ा डर लगता है।

शायद सही उच्चारण की कला मुझमें है ही नहीं। ऐसा नहीं है कि मैं हिंदी शब्दों को ठीक से उच्चारित कर पता हूँ। मुझे याद है अपने बचपन में जब स्कूल में अक्षर-ज्ञान कराया जाता था, बच्चों को “इ” से “इमली” बोलने के बाद जब “ई” से “ईख” बुलाया जाता था तब मैं “ख” से पहले “ई” बोलते समय लगभग चीखता था। सभी बच्चे “ई…SSS” को इतना लम्बा खींचते थे कि मुझे यह समझ ही नहीं आया कि खींचने की सीमा कितनी है! फिर “ऐ” से “ऐनक” में “ऐ” को “आई” की तरह उच्चारित किया जाता था। लेकिन उस कक्षा के बाद मैंने ऐसा उच्चारण कहीं नहीं पाया। बड़ी कक्षा में आने के बाद मेरी मुलाकात अपने एक दक्षिण-भारतीय सहपाठी से हुई जो बिलकुल किताबी हिंदी बोलता था ...आई से आइनक वाली! हाँ, वह हर वाक्य के बाद “है” को “हाई” बोलता था और “जैसा” को “जाईसा”, “कैसे” को “काईसा”। शुरू में मुझे सुनने में बड़ा अजीब लगा, लेकिन मैंने उससे कहा कि तुम बिलकुल शुद्ध उच्चारण करते हो ...इतना शुद्ध कि उत्तर भारत के लोग समझ ही नहीं पायेंगे कि बोलना क्या चाहते हो!

कल मेरा मौसेरे भाई का 4 वर्षीय बेटा मेरी ममेरी बहन की डेढ़ वर्षीय बेटी से मिलने आया तब मेरी बहन अपनी बेटी से पूछ रही थी, “आपकी nose कहाँ है?”, “आपकी eyes कहाँ है” इत्यादि! फिर मेरे 4 वर्षीय भतीजे से उन्मुख हो पूछती है कि इसने सही बताया न! और वो अपनी गर्दन हिला कर सहमती जता देता था। वो तो अपने ज्यूस के गिलास को खत्म करने में अधिक मशगुल था। लेकिन मेरी बहन ने सीधे उससे ही पूछ डाला कि “आपकी eyes (आईज़) कहाँ है?” उसने अपनी गिलास को देखते हुए बड़ी ही मासूमियत से जवाब दिया, “ice (आइस) तो melt हो गया!”

अब यहाँ किसके उच्चारण में कमी थी यह बताना मुश्किल है।

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Same here sir English likh leta samaj leta hu but bol nhi pata.

accha hua maine koi audio ya video nahi post kiya iska 😊

Ekdm sahi sir.

आपने बहुत अच्छा लिखा है।
किसी विदेशी भाषा बोलने में कोई गलती हो तो शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए क्योंकि विदेशी भाषा में कोई निपुण नहीं हो सकता पर अगर मातृभाषा बोलने-लिखने में गलती हो तो यह सबसे बड़ी शर्म की बात हैं।

ठीक कहा। पर गलती करना तो इंसान की फितरत है! 😉

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