मानव स्वभाव का विश्लेषण

in #psychology5 years ago

मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी हैं, जिसको प्रकृति नें दिमाग दिया, अर्थात सोचने समझने की शक्ति दी। इसी दिमाग के कारण मानव के अन्दर अनेक भावनाएं हर पल पैदा होती हैं, और मानव जीवन को इतना प्रभावित करती हैं, कि वो अपने मूल लक्ष्य से भटक जाता हैं, या अपने लक्ष्य के प्रति दृढ निश्चयता धारण कर लेता हैं। भावनाएँ ही हैं, जो मानव को महामनाव बनाती हैं और भावनाएँ ही हैं, जो मानव को दानव भी बना देती हैं। मानव महामानव बनेगा या दानव बनेगा इसका निर्धारण तो उसके अन्दर की भावनाएँ ही करती हैं, पर उसके अन्दर से उठने वाली भावनाएँ किस तरह की होगी, इसका निर्धारण उसके परिवार के संस्कार, उसके वंशानुगत गुण, उसका भौतिक वातावरण जिसमे वो रहता हैं, उसके आसपास के लोग, जिसके साथ उसका उठना बैठना हैं, उसको मिलने वाली शिक्षा, धार्मिक और सामजिक संस्कार आदि के आधार पर होता हैं। आवश्यक नही कि ये सभी बेहतर हो या ये सभी खराब हो। अनेक बार ये भी देखा गया कि उसकी भावनाओं को प्रभावित करने वाले अनेक कारकों में से कोई एक कारक ज्यादा सक्रिय होता हैं, जिसके कारण अन्य सभी कारक बेहतर होते हुए भी उस एक सक्रिय कारक के कारण मानव वैसा नही बन पाता हैं, जैसा बनने की उसकी अपेक्षा होती हैं।
अनेक मामलों में ये देखने में आता हैं, कि सब कुछ बेहतर होते हुए भी इन्सान कुछ गलत कर बेठता हैं, या उसके अन्दर कोई एक आदत खराब होती हैं, जो उसकी सारी अच्छाईयों पर भारी पडती हैं। उसके पीछे कारण उसके किसी एक कारक को ही माना जाता हैं, जो ज्यादा सक्रिय हैं।
इन्सान चाह कर भी अपने अन्दर की उस एक कमी को पकड़ नही पाता, और स्वयं का सुधार नही कर पाता। और ये एक साधारण इन्सान के बस में भी नही हैं। उसके लिए एक बेहतर मनोवैज्ञानिक पूरे केस की स्टडी करने के बाद ही खोज पाता हैं, और उसका तोड़ भी निकाल पाता हैं, पर ये सुविधाएँ एक सामान्य समाज में तो क्या, किसी विकसित समाज में भी देखने को नही मिलती। सभी सामजिक व्यवस्थाओं में जुर्म करने वाले को मुजरिम मानकर जेल भेज देना या दंडित करने का विधान प्रचलन में हैं। जबकि प्रत्येक मुजरिम का केस किसी बेहतर मनोवैज्ञानिक को सौंपा जाय तो वो न सिर्फ उसकी कमी को पकडेगा बल्कि वो उसका अच्छे से इलाज भी करेगा।
संसार मे जितने भी हार्डकोर मुजरिम हैं, उनका सुधार सम्भव हैं। उनके कारण होने वाली अव्यवस्थाओं से निजात पाई जा सकती है। पर प्रचलित व्यवस्थाओं में बदलाव के लिए पूरी मानव सभ्यता की सोच में बदलाव की जरुरत होती हैं। हालांकी असम्भव कुछ नही हैं, पर बहुत बड़े बदलाव का आसानी से हो पाना तुरन्त सम्भव भी नही हैं।

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शुभ रात्री

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