शिक्षा है मुसलमानों की सबसे बड़ी जरूरत

in #social6 years ago

वे वक्त के साथ नहीं चल रहे, इसलिए दुनिया उन्हें पीछे छोड़कर आगे बढ़ती जा रही है। मुसलमान देश का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक वर्ग है, मगर तालीम के मामले में सबसे पिछड़े हुए हैं। फिर भी उनके मजहबी रहनुमा दुनियावी तालीम को कमतर बताने में अपनी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। वे गैर-जरूरी तौर पर दीनी और दुनियावी तालीम की तुलना करते रहते हैं। उनकी तकरीरों का कितना असर होता है, यह किसी भी पिछड़े व बदहाल मुस्लिम मुहल्ले में जाकर देखा जा सकता है। मुस्लिम समाज के सामने आज एक दोराहा है। देश में बाकी समुदाय उससे बहुत आगे निकल गए हैं। शिक्षा के अभाव में ही मुस्लिम समाज में मध्यम वर्ग का विकास नहीं हो पाया, जबकि देश में मध्यम वर्ग तेजी के साथ बढ़ रहा है। किसी देश या समाज का नेतृत्व उसका शिक्षित मध्यवर्ग ही संभालता है।
शिक्षा को पूरी तरह सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। खासतौर से अल्पसंख्यकों की शिक्षा के मामले को। संविधान में इसीलिए अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों की व्यवस्था है। देश में कई अच्छे शिक्षा संस्थान अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा संचालित हैं। लेकिन मुस्लिम समुदाय के ऐसे अच्छे और प्रतिष्ठित संस्थान उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। यह बताने की जरूरत नहीं कि अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों में उस समुदाय के लोगों को एडमिशन के नियमों में छूट मिलती है। कमजोर सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पृष्ठभूमि से आए बच्चों के लिए स्कूल-कॉलेज और बाद में उच्च शिक्षा के लिए भी अपने समुदाय के शिक्षण संस्थान मददगार साबित होते हैं। यही वजह है कि मुसलमानों में अन्य अल्पसंख्यक समुदायों की तुलना में साक्षरता सबसे कम है। देश में जहां 74 प्रतिशत लोग साक्षर हैं। वहां मुसलमानों में साक्षरता प्रतिशत 67 है।
वैसे भारत में साक्षरता का मतलब केवल अपना नाम लिखना-पढ़ना होता है। विकसित देशों में साक्षरता का पैमाना ऊंचा होता है। हमारे यहां साक्षर और शिक्षित के बीच बहुत ज्यादा फासला होता है। तमाम राजनीतिक दलों में बड़े-बड़े पदों पर मुसलमान नेता हैं। चुनाव के दौरान पार्टियां इन मुस्लिम चेहरों को मुसलमानों को लुभाने के लिए आगे कर देती हैं। धार्मिक नेताओं की तरह इनके एजेंडे में भी आधुनिक शिक्षा नहीं है। दलितों से बाबा साहेब अंबेडकर ने एक ही बात कही थी— शिक्षित बनो। दलितों के नेताओं ने कुछ हद तक शिक्षा का महत्व समझा, लेकिन मुसलमानों के नेता आज भी शिक्षा का महत्व समझने को तैयार नहीं हैं। मुसलमानों सहित भारत के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े सभी समुदायों का कल्याण शिक्षा की मुहिम चलाकर ही किया जा सकता है, जब तक ये समुदाय इस बात को नहीं समझ लेते, वे पिछड़े ही रहेंगे। मुस्लिम नेताओं को अपनी राजनीति वहीं से शुरू करनी होगी, जहां से अंबेडकर दलितों की राजनीति शुरू करना चाहते थे।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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