मानसिक तनाव चिन्ता से कैसे बचें?
बहुत अधिक सोचने, विचारने या चिन्ता करने से मानसिक तनाव उत्पन्न होता है। सोचना केवल उसी दशा और उसी विषय में चाहिए जिसमें कि सोच विचार आवश्यक और रचनात्मक हो। परन्तु अधिकांश व्यक्ति काम की बातें बहुत कम और व्यर्थ की बेकार या ऊलजलूल, ऊटपटांग बातें अधिक सोचते हैं जिससे वर्तमान जीवन का कोई सम्बन्ध नहीं होता। पिछली बातें या घटनायें जो बीत चुकी, जिनकों नजरअन्दाज करना किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है। अधिकांश व्यक्ति उन्हीं की स्मृतियों में डूबे रहते हैं और सोच-सोच कर चिन्तित और परेशान रहते हैं। किसी से लड़ाई झगड़ा हो गया, किसी से गाली गलौज तू तूल में गाली दे दी या अपमान कर दिया अथवा कोई दुर्घटना हो गई तो इतनी बात से लंबे समय तक मानसिक संतुलन अस्त व्यस्त हो गया। इस प्रकार के मानसिक तनाव का पहला परिणाम नींद कम हो जाने के रूप में होता है।
स्वास्थ्य के लिए अच्छी, पूरी और गहरी निद्रा परम आवश्यक है यह तो सभी जानते हैं। कोई व्यक्ति एक सप्ताह तक बिना कुछ खाये रह सकता है, पर एक सप्ताह तक नींद के बिना रह पाना सम्भव नहीं है क्योंकि नींद शरीर को विश्राम पहुंचाती है। लेकिन जब मानसिक तानव के कारण नींद में अवरोध उत्पन्न होते हैं तो उसका शरीर और स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। पहले तो चिड़चिड़ापन, थकान, अरूचि और ऊब उत्पन्न होते हैं। इसके बाद और कई तरह की मानसिक समस्यायें उत्पन्न होती हैं।
अत्यधिक सोच विचार और चिन्ता करने से उत्पन्न होने वाला मानसिक तनाव आदि लम्बे समय तक बना रहे तो ‘‘मेन्टल रिटार्डेशन’’ नामक स्थिति आ जाती है। इस स्थिति में आने पर मस्तिष्क की शक्तियां काम करना बंद कर देती हैं और मस्तिष्क लगभग सुन्न सा हो जाता है। आधुनिक जीवन की यांत्रिका सभ्यता के कारण उत्पन्न होने वाले मानसिक तनावों के परिणाम स्वरूप ‘‘मैन्टल रिटार्डेशन’’ के असंख्य मामले प्रकाश में आ रहे हैं। इस दुखद स्थिति का सामना तो मानसिक तनाव सह न पाने की क्षमता सीमा टूट जाने के बाद उत्पन्न होती है। प्रथम इनके लगातार बने रहने के कारण अवसाद ग्रस्त स्थिति बन जाती है, जिसे डिप्रेशन भी कहा जाता है।
इस प्रकार का तनाव बढ़ जाने पर शिरायें फटने सी लगती हैं, आँखें कमजोर हो जाती हैं, कब्ज रहती है, खाना हजम नहीं होता। नशा करने की इच्छा होती है और यदि शारीरिक व मानसिक दोनों प्रकार के तनाव एक साथ उत्पन्न हो गये तो काम और क्रोध के आवेग भी बार-बार पैदा होने लगते हैं।
मानसिक तनाव के कारण सिर दर्द रहता हो तो साधारण सी बात है। कई बार पेट के फोड़े ;अल्सरद्ध उच्च रक्तचाप हृदय रोग और अन्य कई बीमारियां भी उत्पन्न होती हैं। समय पर तनावों का यदि नियंत्रण और समाधान नहीं किया गया तो उच्च रक्तचाप से हार्ट अटैक या पैरालिसिस जैसे रोग उत्पन्न हो जाते हैं और जीवन अस्तित्व को भी संकट ग्रस्त कर देते हैं। इस प्रकार के रोग किसी प्रकार के तनावों के कारण उत्पन्न हो सकते हैं। कभी मुस्कुलर टैंशन से, कभी मैंटल टैंशन से, कभी इमोशनल से या कभी तीनों के सम्मिश्रित कारणों से इस प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। उदाहरण के लिए थके हुये व्यक्ति को अतिशीघ्र क्रोध आता है। क्रोध के अतिरिक्त शीघ्र थक जाने वाले व्यक्ति अधिक चिन्तित भी रहने लगते हैं। मस्तिष्कीय उलझन में फंसे व्यक्ति को सिरदर्द, हृदय पीड़ा, अम्लता और कब्ज आदि रोग तंग करने लगते हैं। जब व्यक्ति अपने को उपेक्षित समझता है और उसकी भावनायें अतृप्त रह जाती हैं तो उसे श्वांस रोग, यक्ष्मा, आर्थराईटिस और कुष्ठ गलित रोग आदि जैसी बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं और जीवन बोझ सा लगने लगता है।
तनाव के कारण मनः स्थिति दिनों दिन दुर्बल होती चली जाती है। उसके साथ ही दुर्बल होती चली जाती है। उसके साथ ही दुर्बल मनः स्थिति के व्यक्ति को छोटे छोटे कारणों से भी भयंकर तनाव उत्पन्न हो सकता है। अतः तनाव से छुटकारे की युक्ति सभी व्यक्तियों को आनी चाहिए। प्रतिकुल स्थिति उत्पन्न होने पर विचार करना चाहिए कि उसकी चिन्ता कर असन्तुलित होने के स्थान पर उतार चढ़ाव को स्वाभाविक मानते हुये संतुलन बनाये रखने की दूरदर्शिता अपनानी चाहिए तथा प्रस्तुत प्रतिकुलताओं के साथ खिलाड़ी की भावना से आँख-मिचैली खेलने की दृष्टि रखना चाहिए। इस तरह का साहस ऐसा दृष्टिकोण रखा जाये तो फिर कोई भी कठिनाई ऐसी नहीं रह जाती जिसका प्रयत्नपूर्वक हल अथवा धैर्यपूर्वक समाधान न किया जा सके।
सर्वप्रथम तो उन स्थितियों को समझने और उनके कारणों को पहचानने की चेष्टा की जानी चाहिए जिनसे तनाव या चिन्तायें उत्पन्न होती हैं। चाहे वह परिवार में असमंजस्य के कारण उत्पन्न होने वाला तनाव हो या आर्थिक कठिनाईयों से पैदा हुई चिन्ता हो। कई बार बहुत सी समस्यायें सोचने का अर्थ है अब शत्रुओं को एक साथ लड़ने के लिए चुनौती देना। सब समस्याओं पर एक साथ विचार करने के कारण किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो पाता और परेशानियां अपने स्थान पर खड़ी रहती हैं। इस स्थिति से निबटने के लिए कारगर उपाय यह है कि एक एक समस्या को क्रमवार सुलझाया-निबटाया जाये तथा मानसिक श्रम को अदलते बदलते रहकर और किये जा रहे कार्यों में रूचि रखते हुये, उन्हें सुव्यवस्थित बनाने का कला कौशल प्रस्तुत करने की रीति-नीति अपनाकर मानसिक तनाव से बचा जा सकता है।
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